धुंद
धुंद है
जो छटने का नाम ही नही लेती
बदलते सारे मौसम कोहरे की चादर में ही आते है
धुंद है
जो छटने का नाम ही नही लेती
बदलते सारे मौसम कोहरे की चादर में ही आते है
मकडी़ के जाले
जैसा फैला अतीत
और
किसी अंजाने गांव की पडडंडी यों जैसा भविष्य
आदिवासी गांव की सांझ जैसा लगता है सबकुछ
दिनभर की भागादौड के बाद सुस्ताता हुआ महुआ का पेड.
निलेश. १६ अगस्त २०१२
और
किसी अंजाने गांव की पडडंडी यों जैसा भविष्य
आदिवासी गांव की सांझ जैसा लगता है सबकुछ
दिनभर की भागादौड के बाद सुस्ताता हुआ महुआ का पेड.
निलेश. १६ अगस्त २०१२
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