Monday, November 19, 2012
Sunday, November 11, 2012
धुंद है जो छटने का नाम ही नही लेती
धुंद
धुंद है
जो छटने का नाम ही नही लेती
बदलते सारे मौसम कोहरे की चादर में ही आते है
धुंद है
जो छटने का नाम ही नही लेती
बदलते सारे मौसम कोहरे की चादर में ही आते है
मकडी़ के जाले
जैसा फैला अतीत
और
किसी अंजाने गांव की पडडंडी यों जैसा भविष्य
आदिवासी गांव की सांझ जैसा लगता है सबकुछ
दिनभर की भागादौड के बाद सुस्ताता हुआ महुआ का पेड.
निलेश. १६ अगस्त २०१२
और
किसी अंजाने गांव की पडडंडी यों जैसा भविष्य
आदिवासी गांव की सांझ जैसा लगता है सबकुछ
दिनभर की भागादौड के बाद सुस्ताता हुआ महुआ का पेड.
निलेश. १६ अगस्त २०१२
अब के तुफान ने बहुत रुलाया
अब
के तुफान ने बहुत रुलाया
उस
तुफान की सारी निशानीयां देख सकती हो
आंखो
मे
चेहरे
पर पढ सकती हो उसके बदसुरत निशान
कहते
थे, और मै भी दिलासा दिया करता था
की
जब एक से दो हो जाये तो तुफान का सामना होता है
मगर
पाया हमेशा आंधीयों मे अकेले खुद को झुजते, झुंजलाते
एक
से दो होने पर भी बाकी है
वहीं
खामोश सा अनेकापन…….
दिया था अपना गर्म हाथ मेरे माथे पर
अब
भी बिजली भरी रातों मे महसुस करता
हू
तुम्हारे हाथों की गर्मी
और
तुम्हारे
सांसो की सरसराहट……………..
(Saturday,
June 11, 2011)
याद है सब कूछ अब तक
याद
है सब कूछ अब तक
कुछ
नही भुला
एक
सरसराहट आती
और
थंडी
हवा छु जाती तो सिहर उठता
कहता
शायद तुम आसपास ही हो.
लोड
शेडींग के दिन थे वो
और
तुफानी रात भी
तुमने
कहा था
“क्या
बच्चो की तरह बिजलीयों से डरते हो…….”
और
रख दिया था अपना गर्म हाथ मेरे माथे पर
अब
भी बिजली भरी रातों मे महसुस करता
हू
तुम्हारे हाथों की गर्मी
और
तुम्हारे
सांसो की सरसराहट……………..
(Saturday,
June 11, 2011)
जीवन नहीं होता घडी की सुई सा
जीवन नहीं होता घडी की सुई सा
की,
सुईंयों को पीछे घुमाकर
समय ठिक कर ले.
जहां सुई हैं
वहीं से समय को
ठीक करने की कवायद करनी होती है.
जीवन नही होता अ-रुपांतरणीय
मिलता है मौका हमेशा ही
विष से अमृत के रुपांतरण का.
जहां है वहां से
रुपांतरण की संभावना
हमेशा ही प्रबल होती है.
डॉ.
निलेश हेडा
६ नवंबर २०१२
अब पुराना गांव अपना नही रहा.
घुमावदार
रास्ते की तरफ मुड कर देखा
गांव
काफी दूर छुट गया था.
रोटी
यां सेकती झोपडीयों से निकलती धुयें की लकीरे
भी
मद्धम पड़ गयी थी.
प्यास
थी और भूख भी लगी थी
लेकिन
गरीब गांव उभर रहा था सुखे की चपेट से
सो
ऐसे ही निकल पडा था.
रस्ते
भर साथ निभाने के लिये लाया था एक अकेलापन
और
एक अबूझ पहेली सा खुद का साथ.
सुना
है अब गांव के सारे पनघटों ने दम तोड दिया है
सुना
है अब गांव में बंजारे नही आते
सुना
है अब खुशहाली के लिये बांध भी बन गया है
सुना
है अब सारे चेहरे बदल गये है गांव के .
अब
नये गांव में मन नही लगता,
अब
पुराना गांव अपना नही रहा.
डॉ.
निलेश हेडा
२६ सितंबर २०१२
शाम
६.३०
उस निष्पर्ण में
उस निष्पर्ण
में फिर से उग रही है कोंपले
जीवन से भरी नन्ही नन्ही पत्तीयों से ढक रहा है खुद को
किस आकाष को छुना है उसे, किस दिशा में बढेगी ये हरित रेखा
कर लिया है उसने तय
आकाष की कोई सिमा नही होती
दिशाओं का कोई बंधन नही होता.
निलेश. १५ अगस्त २०१२
जीवन से भरी नन्ही नन्ही पत्तीयों से ढक रहा है खुद को
किस आकाष को छुना है उसे, किस दिशा में बढेगी ये हरित रेखा
कर लिया है उसने तय
आकाष की कोई सिमा नही होती
दिशाओं का कोई बंधन नही होता.
निलेश. १५ अगस्त २०१२
कुछ तो घट रहा है................
कुछ तो घट रहा है................
कुछ तो उबल रहा है,
कुछ तो पक रहा है.
बेसबब ही तो नही यह आकारहीनता
बेसबब ही तो नही ये रिक्तता
कुछ तो है जो है आतुर एक आकार पाने को
कुछ तो है जो है आतुर शुण्यता भरने को.
उडान और स्थिरता में
एक ही क्षण का तो अंतर होता है.
निलेश. १५ अगस्त २०१२
कुछ तो उबल रहा है,
कुछ तो पक रहा है.
बेसबब ही तो नही यह आकारहीनता
बेसबब ही तो नही ये रिक्तता
कुछ तो है जो है आतुर एक आकार पाने को
कुछ तो है जो है आतुर शुण्यता भरने को.
उडान और स्थिरता में
एक ही क्षण का तो अंतर होता है.
निलेश. १५ अगस्त २०१२
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