Monday, November 19, 2012

गालियां

यह शाम का
थ़का थ़का सा अंधेरा
और नुक्कड पर
बुजुर्गों को गालियां बकते कुछ जवान बच्चे.
यह बच्चे,
बुजुर्गों को जिम्मेवार ठहराते है
इस शाम के उकतायें हुये अंधेरों के लिये.
यह बच्चे,
अपनी हतब़लता को द़बाये
कुर्सीयां तोडते बूढे़ नेतृत्व को गालियां बकते है
और बदसुरत पंडीतों की फौज दौड पडती है
मंदिरों की ओर शांती की प्रार्थना करने के लिये.
कई बार प्रार्थना के साथ शाप भी दिया जाता है बच्चों को.  

इन जवां बच्चो ने पढा़ है विज्ञान और देखे है
सामाजीक उथलपुथल के अनगिनत पॅटर्नस.
इन बच्चो ने पढे़ है सामाजिक न्याय और समता के
मार्क्स और ऐंजेल के खुबसुरत प्रमेय,
और पाया है धार्मिक उन्माद को मानवता का पागलपन.

बुजुर्गों और पंडीतों की दोस्ती युगों से कारण बनती आई है
बच्चो के उन्मादी गालियों के लिये.

डॉ. निलेश हेडा
१९ नवंबर २०१२
शाम ६.३०

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